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नथनी

एक बार कबीरदास जी हरि भजन करते एक गली से निकल रहे थे। उनके आगे कुछ स्त्रियां जा रही थी। उनमें से एक स्त्री की शादी कहीं तय हुई होगी तो उसके ससुरालवालों ने शगुन में एक नथनी भेजी थी। वह लडकी अपनी सहेलियों को बार - बार नथनी के बारे में बता रही थी कि नथनी ऐसी है वैसी है। ये खास उन्होने मेरे लिए भेजी है। बार बार बस नथनी की ही बात।
उनके पीछे चल रहे कबीरजी के कान में सारी बातें पड़ रही थी। तेजी से कदम बढते कबीर उनके पास से निकले और कहा-
नथनी दीनी यार ने, तो चिंतन बारम्बार,
नाक दिनी करतार ने, उनको दिया बिसार।

सोचो यदि नाक ही ना होती तो नथनी कहां पहनती ! यही जीवन में हम भी करते है। भौतिक वस्तुओं का तो हमें ज्ञान रहता है परन्तु जिस परमात्मा ने यह दुलर्भ मनुष्य देह दी और इस देह से संबंधित सारी वस्तुऐं, सभी रिश्ते-नाते दिए, उसी को याद करने के लिए हमारे पास समय नही होता।