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वीर सिपाही की अंतिम इच्छा

जब मेने आतंकवादियो कि गोली से मारे गये ,
वीर सिपाही के शरीर के पास से उसकी डायरी को उठाया ,
तो उसके संस्मरणों में मेने उसकी "अंतिम इच्छा " को इस तरहा लिखा हुआ पाया ,
मेरी लम्बी सेवा में पुलिस थाने के अलावा ऐसा कोई सरकारी कार्यालय नजर नहीं आया ,
जहाँ मैने पुरे साल 24 घण्टे कभी ताला लटका नहीं पाया ,
मेरी जिन्दगी में कभी छुट्टी का सन्डे या मंडे नहीं आया ,
जब हर तरफ जगमगाई दीपो कि लाली तो मेने भी बनाई दीपावली ,
जब रंग गुलाल उड़ाती निकली मस्तानो कि टोली तो मेरे मन भी भा गई होली ,

      टूट ना जाये ताले कहीं ,
पड़े न खलल चैन में ,
मैने बैचेन आँखों में नींद डूबोली ,
धुप सर्दी और बारिश भी न कर पाये मेरे जोश को ठंडा,
मै तो करता रहा डूयटी हाथ में लेके डण्डा ,
सच कहु ख्य़ाल तो मेंरे भी मन में बहुत आये ,
घर जाकर बीवी से बतियाऊ ,
पिक्चर ले जाऊ,
मेला घुमाऊ,
बच्चों को पढ़ाऊ,
थपकी देकर सुलाऊ ,
पर कमबखत ड्यूटी ने आफत डाली ,
कभी मन मसोला डाला कभी कल पे बात टाली ,
ज़माने ने भी देखा तो हिकारत से देखा,
गलती पे खाई अफसर कि डाटे ,

      जिसके हो दामन में हो सिर्फ नफरत और कांटे,
तुम्हीं बताओ वो फूल कहाँ से बाटे ,
माना मेरी वर्दी में नज़र आते हैं काले धब्बें,
पर अब तो हैं इल्जाम नींव कि ईट से शिखर तक,
हर कोई बैताब है नहाने को ,
भ्रष्टाचार कि गंगा पैर से सर तक ,
जब पुट रही हो हर चेहरे पर कालिख़ ,
तो मैं ही उजला नजर कैसे आऊ ,
जिस समाज में दुर्लभ हो गया ईमान का साबुन ,
वहा में अपनी वर्दी कैसे चमकाऊ ,
हम बांगला देश मुक्ति और कारगिल गाथा बड़े गर्व से गाते हैं ,
वीर शहीदो के किस्से हम सुनते है और सुनाते है ,

      जितने फौजी एक युद्ध में अपना शीश कटवाते है ,
उतने तो यहाँ हर साल ड्यूटी पर मारे जाते हैं ,
आतंकी और लुटरो से यह चमन नहीं लूट पायेगा ,
खाकी वर्दी वालों का बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा ,
लेकिन जब इतिहास लिखो,
तुम कलम उठाओ पन्नो पर,
कसम तुम्हे है सच्चाई कि ,
इतना बस दिखला देना ,
जिक्र करो जब हरियाली और खुशहाली कि पंजाब कि ,
पुलिस वालो कि विधवाओं कि सुनी मांग दिखा देना ,
कशमीर में लोकतन्त्र का झण्डा जब फेराते हो तुम जब ,
कुछ अनाथ बच्चों कि हसंती तस्वीर दिखा देना ,
आसाम ,
मणिपुर ,
त्रिपुरा में अब विघटन का शोर नहीं ,
कुछ गुमनाम चिताओं पर श्रद्धा सुमन तुम चढ़ा देना ,

      गर दिखती हो शांति और व्यवस्था कि उजली तस्वीर कही ,
डाकू कि गोली से घायल लंगड़ी टांग बता देना ,
सीमा पर लड़ता है फौजी दुशमन से ,
हम लड़ते है अपनों से अपने मन से ,
होती है हम से भी गलती ,
गलती करता है इंसान,
हम को तो करनी है केवल कातिल वहशी कि पहचान ,
कहते है कुछ लोग हम है वर्दी वाले गुण्डे ,
अपनी भाषा गाली डण्डे ,
बदजुबान है ,
बददिमाग है ,
भ्रष्ट और निकम्मे है ,
सच्चाई गर इसमे होती तो तोहमत हमें लगा देना ,
पर मेरी " अंतिम इच्छा " पर इतना सम्मान दिखा देना ,
गर खाकी वर्दी के पिछे भी दिख जाये इंसान कोई ,
तो बस प्यार से मुस्कुरा देना |
      जय हिन्द ...... जय भारत ......